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Monday, August 12, 2013

दिल्ली बस दिलवालों की नहीं बल्कि सबकी है!

दिल्ली! दिल्ली बस दिलवालों की नहीं बल्कि सबकी है, दिल हो चाहे न हो। यहां हर दिन लाखों लोग ट्रेन से उतरते हैं कुछ लौटने को आते हैं तो कुछ बस जाने को। कुछ मैट्रो सिटी की चकाचौंध में काम की तलाश को आए तो कुछ अपने सपनों की पोटली लिए
भविष्य संवारने यानी पढ़ाई को। यहां स्वागत है सभी का।
फिर भी मुझे यहां आने वालों से एक शिकायत है। आप लोग अपने संस्कारों को इस यमुना नाम के नाले में क्यों बहा देते है। जो सीख कर आए हैं यहां आकर भूल क्यों जाते हैं। ऐसा सोचना कि 'दिल्ली का लाइफस्टाइल ही ऐसा है...' तो ये तो गलत है। आप खुद भी तो एक लाइफ स्टाइल रखते हैं वैसे ही क्यों नहीं रहते। उन्हें साथ लेकर चलना जरूरी है क्योंकि हर किसी का एक अस्तित्व है।
ये आपको याद रखना होगा कि आप देश के जिस भी हिस्से से रिश्ता रखते हों ये न भूलें, आप उस जगह को रिप्रेजेंट करते हैं। अक्सर लोगों को यहां ऐसा कहते सुना होगा कि 'फलां जगह के लोग तो होते ही ऐसे हैं..'। छोटे शहरों से बड़े शहरों का रास्ता इतना दूर नहीं कि यहां आने तक आप अस्तित्वहीन हो जाएं...चलें लेकिन संस्कारों के साथ। अकेले रहने का मतलब यह नहीं कि आपको कोई नहीं देखता, न कोई पूछता। यहां भी पूछा जाता है! जब फोन की घंटी बजती है और मम्मी—पापा बोलते हैं।
( उन सभी को सॉरी जिनके पास अस्तित्व जिंदा है।)

5 comments:

  1. सहमत ... अपमे अस्तित्व को बना के रखना चाहिए .. संस्कार जीवित रहने चाहियें ..

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    1. ji bilkul sach kaha sir aapne... astitv ke bina to jeevan ki kalpna bhi nhi ...

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  2. आपकी बात याद रखेंगें ....

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