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Thursday, August 29, 2013

कितना कारगर होगा तेजाबी हमलों पर अदालत का फैसला




वन्दना शर्मा
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने एसिड अटैक की शिकार लक्ष्मी की याचिका पर  फैसला सुनाया है कि अब दुकानों पर खुलआम तेजाब की बिक्री करना एक अपराध होगा। इसके लिए विक्रेता के पास लाइसेंस का होना जरूरी है और साथ ही 18 साल से कम उम्र के व्यक्ति को तेजाब नहीं बेचा जाएगा। अदालत के इन दिशा.निर्देशों से ऐसी उम्मीद जताई जा रही थी कि एसिड अटैक की हिंसक घटनाओं में अब कुछ कमी आएगी। लेकिन हालात अब भी जस के तस बने हुए हैं। इन वारदातों को अंजाम देने वालों के हौंसले आज भी उतने ही बुलंद हैं जितने की पहले थे। अदालत के इस फैसले को आए कुछ समय भी नहीं हुआ कि एसिड अटैक के मामले अब भी लगातार सामने आ रहे हैं। पिछले माह दो और मामले सामने आए जिनमें से एक में युवक ने एक नव विवाहिता पर  तेजाब से हमला कर जान ले ली और परिवार को जला दिया। इस मामले पर स्थानीय अधिकारियों ने बयान दिया कि इस घटना को एक आम अपराध के तौर पर लिया जाना चाहिए। जबकि दूसरे मामले में एक पुरूष ने एक शादीशुदा महिला से विवाह करने की इच्छा जताई और उसके मना करने पर उस पर तेजाबी हमला कर डाला।   इससे यह बात तो स्पष्ट है कि लोगों में कानून का डर नहीं है। अनुमानित आंकड़ों के अनुसारए देश में हर साल लगभग एक हजार महिलाएं एसिड अटैक की शिकार होती हैं। वहींए महिला आयोग के हैल्प डेस्क पर गत छह माह में ऐसी 92 शिकायतें दर्ज़ कराईं गईं। एक हालिया सर्वे के मुताबिकए एसिड अटैक का शिकार होने वाले लोगों में अस्सी फीसदी केवल महिलाएं ही हैं जबकि इससे भी ज्यादा चौंकाने वाला तथ्य यह निकला कि इनमें से 70 फीसदी शिकार ष्माइनरष् हैं।
अभी दिल्ली की मेधावी लड़की प्रीति राठी की मौत को ज्यादा समय नहीं बीता जब मुंबई में वह एक अंजान व्यक्ति द्वारा हमले की शिकार हुई और एक महीने तक जिंदगी और मौत के बीच जूझने के बाद आखिरकार मौत से हार गई। प्रीति की मौत सिर्फ एक मौत नहीं बल्कि हमारी नाकाम सुरक्षा व्यवस्था का सबब थी।     
गौरतलब है कि अदालत ने अपने फैसले में एसिड अटैक की पीड़िताओं को 3 लाख रूपये की मुआवज़ा राशि देने का आदेश दिया है हालांकिए अभी पीड़िता के पुनर्वास संबंधित कुछ स्पष्ट नहीं किया गया है। यह जरूरी है कि इस हमले का शिकार होने वाली महिलाओं को जल्द से जल्द क सुरक्षित माहौल दिया जाए। उन्हें ईलाज और जरूरी सर्जरी का खर्च मुहैया कराया जाए। लेकिन वर्तमान स्थिति ठीक इसकी उलट है। हमले की शिकार पीड़िता को चक्कर लगाने के बाद जो मुआवजा राशि मिलती है वह इतनी थोड़ी होती है कि इससे ईलाज करा पाना असंभव होता है।
एसिड अटैक एक ऐसी शारीरिक हिंसा और मानसिक शोषण है जो पीड़ित को पल पल मरने को मजबूर कर देता है। अदालत ने अपने फैसले में इस अपराध को एक गैर.जमानती अपराध बताया है जिसके लिए न्यूनतम सजा तीन साल तय की गई है। इसी के साथ अपराधी पर 50 हजार का हर्जाना भरना होगा।  
 जबकि फिलहाल एसिड अटैक को गंभीर अपराध की श्रेणियों में न रखते हुए आरोपियों को साधारण बेल पर छोड़ दिया जाता है। अपने इस कुकृत्य के बाद वे साल.छह महिने की साधारण कैद के बाद अपनी सामान्य जिंदगी जीने लगते हैं जबकि पीड़िता को पूरी जिंदगी अपने जले शरीर को छुपाते हुए बीत जाती है। जिससे पीड़िता को अपने शरीर में होने वाली तेज जलन को झेलने के अलावा चेहरे के दागों को साथ लिए चलना पड़ता है। पीड़ित की ज़िंदगी हमेशा के लिए पूरी तरह बदल जाती है। उन्हें लोगों के बीच जानेए उनसे मिलने में हीन भावना महसूस होने लगती है।
आखिर क्यों ऐसे अपराध करने के बावजूद इन आरोपियों को समाज स्वीकार कर लेता हैघ् एसिड को इस पुरूषवादी अमानवीय समाज में इन दिनों महिलाओं के खिलाफ इस्तेमाल किये जाने वाले हथियार के रूप में देखा जाने लगा है। अक्सर देखा गया है कि इस तरह के खतरनाक जानलेवा हमले का शिकार महिलाएं तब होती है जब वे किसी पुरूष की बात या एक तरफा प्यार को ठुकरा देती हैं। दरअसलए ये निर्दोष महिलाएं और लड़कियां उन पुरूषों के झूठे अहमए अपमान और हिंसा की बली चढ़ रही हैं जिसे वे अपने ठुकराए जाने पर बेइज्जती समझ बैठते हैं। ऐसी कई वारदातें सामने आ चुकी है जिनमें स्कूल और कॉलेज जाने वाली लड़कियों के चेहरे पर ब्लेड से हमला कर उसे बिगाड़ने की कोशिश की गई। क्यों पुरूष अपनी इच्छाओं के विरूद्ध जाते देख वह अपनी सहन शक्ति खो देता है। कई बार ऐसी ही स्थितियों का सामना महिलाओं को भी करना पड़ता है। फिर क्यों नहीं वह भी इस तरह एसिड या ब्लेड का सहारा ले किसी का चेहरा या जिंदगी को बिगाड़ देने का फैसला ले लेतींघ् सही मायनों में महिलाएं अपनी सभ्यताए विवेकए ब़ुद्धि और सहनशीलता का परिचय देते हुए इन्हें शांतिपूर्वक स्वीकार कर लेती हैं। पुरूषों को महिलाओं से ऐसी ही समझदारी की सीख लेना जरूरी है।
दरअसल, इस तरह के हमला कर किसी महिला को कुरूप बनाकर या उसकी जिंदगी बर्बाद करने वाले पुरुष मानसिक रूप से कमजोर होते हैं। इन्हें यह समझ नहीं आता कि इस स्थिति से कैसे निपटें। उनके दिमाग में हिंसा करने और बदला लेने की भावना घर कर जाती है और वारदात को अंजाम दे अपराधी बन जाते हैं। हमें अब ऐसे हल खोजने होंगे जिससे कि अन्य महिलाओं को इन तेजाबी हमलों की हिंसा से बचाया जा सके। जो महिलाएं इस हिंसा की शिकार हो चुकीं हैं उन्हें जल्द से जल्द अपने पैरों पर खड़े करने के लिए सुविधाएं मुहैया कराईं जाएं जिससे कि ये भी पहले की तरह मुख्यधारा में शामिल हों सकें।

7 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - शुक्रवार 30/08/2013 को
    हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः9 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra

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    1. आपके प्रोत्साहन के लिए शुक्रिया राजीव जी।

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  2. तेज़ाबी हमला तो वास्तव में किसी की हत्या से भी ज्यादा जघन्य अपराध घोषित किया जाना चाहिए । नए कानून का स्वागत है किंतु जैसी आपने आशंका भी जताई है कि पहले से मौजूद बहुत अन्य कानूनों की तरह इसका भी वही हश्र होने वाला है और कुछ नए मुकदमों को छोडकर बहुत बडा परिवर्तन आ जाएगा इसमें मुझे संदेह है । विचारोत्तेजक सामयिक आलेख

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    1. जी अजय जी। यह सच है कि आज के समय में यह दर्दनाक घटना जितनी तेजी से बढ़ रही है उतनी मुस्तैदी हमारे हुक्मरानों में भी दिखनी चाहिए।

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  3. ज्वलंत समस्या पर सटीक लेख |
    आशा

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    1. यहां आकर आपने राय दी आशा जी अच्छा लगा।

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  4. उत्कृष्ट आलेख.
    http://dehatrkj.blogspot.com

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