चेहरे पर एक दाग लग जाता है तो उसे हम जल्दी से जल्दी साफ करने को
दौड़ते हैं और तब तक बेचैन रहते हैं जब तक चेहरा पहला-सा नहीं हो जाता। ऐसे
में उन लोगों की बेचैनी का अंदाजा लगाया जा सकता है जो ‘एसिड अटैक‘ का
शिकार हो रहे हैं। इन दिनों ऐसी घटनाओं का ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है। लेकिन
इनके खिलाफ ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।
एसिड अटैक के मामले केवल भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी तेजी से बढ़ रहे हैं। दुनिया में ऐसे सबसे ज्यादा मामले हमारे ही पड़ोसी देश बांग्लादेश में पाये जाते हैं। इसके अलावा पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, कंबोडिया और कोलंबिया में भी ऐसी वारदातों को अंजाम दिया जा रहा है।
इन मामलों को गंभीरता से लेते हुए बांगलादेश की सरकार ने एसिड की खुली बिक्री पर रोक लगा दिया। और देखिए, सरकार का यह कदम इतना कारगर सिद्ध हुआ कि ऐसे अपराधों में लगभग 15-20 फीसदी तक की कमी आई गई। एक हालिया सर्वे के मुताबिक, एसिड अटैक का शिकार होने वाले लोगों में अस्सी फीसदी केवल महिलाएं ही हैं जबकि इससे भी ज्यादा चैंकाने वाला तथ्य यह निकला कि इनमें से 70 फीसदी शिकार ‘माइनर‘ हैं।
अक्सर देखा गया है कि इस तरह के खतरनाक जानलेवा हमले का शिकार महिलाएं तब होती है जब वे किसी पुरूष की बात या एक तरफा प्यार को ठुकरा देती हैं। दरअसल, ये निर्दोष महिलाएं और लड़कियां उन पुरूषों के झूठे अहम, अपमान और हिंसा की बली चढ़ रही हैं जिसे वे अपने ठुकराए जाने पर बेइज्जती समझ बैठते हैं। इन जानवर समान तथाकथित इंसानों को इस बात का ज़रा भी इल्म नहीं होता कि अपनी एक जि़द और नासमझी के पीछे वे किसी और की पूरी जि़ंदगी बर्बाद कर रहे हैं।
एसिड अटैक एक ऐसा हिंसक शोषण है जो किसी को भी तिल-तिल कर जीने को मजबूर कर देता है। जब शरीर के किसी हिस्से पर ऐसिड गिराया जाता है तो उस हिस्से की त्वचा के टीशू (ऊतक) नष्ट होकर जल जाते हैं। जिन्हें पहले जैसा होने में एक लंबा समय लग जाता है और कई बार वे इस लायक रह भी नहीं जाते कि फिर से उस अवस्था में लौट सकें। एक धीमी, लंबी और साथ ही महंगी प्रक्रिया के चलते इसका इलाज किया जाता है। इसके इलाज में होने वाली ‘री-कन्सट्रक्टिव थैरेपी‘ और प्लास्टिक सर्जरी का खर्च वहन करना आसान नहीं है। जिसमें कुछ-कुछ समय के अंतराल पर दर्जनों ऑपरेशन होते हैं। इसका इलाज भी सिर्फ कुछ महंगे और बड़े अस्पतालों में ही संभव हो पाता है। अक्सर पीडि़त की आंख या कान पर इसका सीधा असर होता है जिससे वह अपनी देखने या सुनने की क्षमता से पूरी तरह वंचित हो जाते हैं।
एसिड अटैक, शारीरिक और मानसिक हिंसा दोनों तरह का हमला है। जिससे पीडि़त को अपने शरीर में होने वाली तेज जलन को झेलने के अलावा चेहरे के दागों को साथ लिए चलना पड़ता है। पीडि़त की जि़ंदगी हमेशा के लिए पूरी तरह बदल जाती है। उन्हें लोगों के बीच जाने, उनसे मिलने में हीन भावना महसूस होने लगती है।
वहीं दूसरी ओर, एसिड अटैक को गंभीर अपराध की श्रेणियों में न रखते हुए आरोपियों को साधारण बेल पर छोड़ दिया जाता है। जबकि अब समय की यही दरकार है कि ऐसे जघन्य अपराध करने वाले अपराधी को कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए ताकि अन्यों को भी इससे सबक मिल सके।
हाल ही में, हरियाणा राज्य ने एसिड अटैक की पीडि़त महिलाओं के लिए राहत और बचाव केन्द्र तैयार किया है जिसके तहत पीडि़ता की देख-रेख, क्षतिपूर्ति, इलाज और इसके साथ ही अपना जीवन सुचारू रखने के लिए पांच लाख रूपये देने की घोषणा की है।
आखिर क्यों, सरकार इस बात पर ध्यान देने की बजाए कि दोषियों के साथ क्या किया जाए इस बात पर जोर डालती है कि अपराध होने पर पीडि़तों का क्या किया जाए? उसके लिए भी पीडि़तों को भी अपना हक नहीं मिल पाता और उन्हें एक बार फिर हुक्मरानों द्वारा शोषित किया जाता है। इसका एक उदाहरण उत्तर प्रदेश की अर्चना कुमारी के रूप में देखा जा सकता है जिसका शरीर पूरी तरह जल चुका है एक हादसे में अपनी एक आंख और कान को गंवा चुकी है फिर भी सरकार उस युवती से सबूतों की मांग कर रही है कि वह एसिड अटैक की शिकार हैं। उसके बाद ही सरकार उसे आर्थिक सहयोग दे सकेगी।
एसिड को इस पुरूषवादी अमानवीय समाज में इन दिनों महिलाओं के खिलाफ इस्तेमाल किये जाने वाले हथियार के रूप में देखा जाने लगा है। पिछले दिनों रांची के विश्वविद्यालय में लड़कियों के जींस पहनने के विरोध में उन्हें यह धमकी दी गई कि यदि वे जींस पहनेंगी तो उनके चेहरे पर तेजाब डाल उसे खराब कर दिया जाएगा। इससे पहले भी कुछ ऐसे ही किस्मकी वारदातें सामने आ चुकी है जिनमें स्कूल और काॅलेज जाने वाली लड़कियों के चेहरे पर ब्लेड से हमला कर उसे बिगाड़ने की कोशिश की गई। क्यों पुरूष अपनी इच्छाओं के विरूद्ध जाते देख वह अपनी सहन शक्ति खो देता है। कई बार ऐसी ही स्थितियों का सामना महिलाओं को भी करना पड़ता है। फिर क्यों नहीं वह भी इस तरह एसिड या ब्लेड का सहारा ले किसी का चेहरा या जिंदगी को बिगाड़ देने का फैसला ले लेतीं ? पुरूषों को महिलाओं से ऐसी ही समझदारी की सीख लेना जरूरी है। सही मायनों में महिलाएं अपनी सभ्यता, विवेक, बु़द्धि और सहनशीलता का परिचय देते हुए इन्हें शांतिपूर्वक स्वीकार कर लेती हैं।
एसिड अटैक के मामले केवल भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी तेजी से बढ़ रहे हैं। दुनिया में ऐसे सबसे ज्यादा मामले हमारे ही पड़ोसी देश बांग्लादेश में पाये जाते हैं। इसके अलावा पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, कंबोडिया और कोलंबिया में भी ऐसी वारदातों को अंजाम दिया जा रहा है।
इन मामलों को गंभीरता से लेते हुए बांगलादेश की सरकार ने एसिड की खुली बिक्री पर रोक लगा दिया। और देखिए, सरकार का यह कदम इतना कारगर सिद्ध हुआ कि ऐसे अपराधों में लगभग 15-20 फीसदी तक की कमी आई गई। एक हालिया सर्वे के मुताबिक, एसिड अटैक का शिकार होने वाले लोगों में अस्सी फीसदी केवल महिलाएं ही हैं जबकि इससे भी ज्यादा चैंकाने वाला तथ्य यह निकला कि इनमें से 70 फीसदी शिकार ‘माइनर‘ हैं।
अक्सर देखा गया है कि इस तरह के खतरनाक जानलेवा हमले का शिकार महिलाएं तब होती है जब वे किसी पुरूष की बात या एक तरफा प्यार को ठुकरा देती हैं। दरअसल, ये निर्दोष महिलाएं और लड़कियां उन पुरूषों के झूठे अहम, अपमान और हिंसा की बली चढ़ रही हैं जिसे वे अपने ठुकराए जाने पर बेइज्जती समझ बैठते हैं। इन जानवर समान तथाकथित इंसानों को इस बात का ज़रा भी इल्म नहीं होता कि अपनी एक जि़द और नासमझी के पीछे वे किसी और की पूरी जि़ंदगी बर्बाद कर रहे हैं।
एसिड अटैक एक ऐसा हिंसक शोषण है जो किसी को भी तिल-तिल कर जीने को मजबूर कर देता है। जब शरीर के किसी हिस्से पर ऐसिड गिराया जाता है तो उस हिस्से की त्वचा के टीशू (ऊतक) नष्ट होकर जल जाते हैं। जिन्हें पहले जैसा होने में एक लंबा समय लग जाता है और कई बार वे इस लायक रह भी नहीं जाते कि फिर से उस अवस्था में लौट सकें। एक धीमी, लंबी और साथ ही महंगी प्रक्रिया के चलते इसका इलाज किया जाता है। इसके इलाज में होने वाली ‘री-कन्सट्रक्टिव थैरेपी‘ और प्लास्टिक सर्जरी का खर्च वहन करना आसान नहीं है। जिसमें कुछ-कुछ समय के अंतराल पर दर्जनों ऑपरेशन होते हैं। इसका इलाज भी सिर्फ कुछ महंगे और बड़े अस्पतालों में ही संभव हो पाता है। अक्सर पीडि़त की आंख या कान पर इसका सीधा असर होता है जिससे वह अपनी देखने या सुनने की क्षमता से पूरी तरह वंचित हो जाते हैं।
एसिड अटैक, शारीरिक और मानसिक हिंसा दोनों तरह का हमला है। जिससे पीडि़त को अपने शरीर में होने वाली तेज जलन को झेलने के अलावा चेहरे के दागों को साथ लिए चलना पड़ता है। पीडि़त की जि़ंदगी हमेशा के लिए पूरी तरह बदल जाती है। उन्हें लोगों के बीच जाने, उनसे मिलने में हीन भावना महसूस होने लगती है।
वहीं दूसरी ओर, एसिड अटैक को गंभीर अपराध की श्रेणियों में न रखते हुए आरोपियों को साधारण बेल पर छोड़ दिया जाता है। जबकि अब समय की यही दरकार है कि ऐसे जघन्य अपराध करने वाले अपराधी को कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए ताकि अन्यों को भी इससे सबक मिल सके।
हाल ही में, हरियाणा राज्य ने एसिड अटैक की पीडि़त महिलाओं के लिए राहत और बचाव केन्द्र तैयार किया है जिसके तहत पीडि़ता की देख-रेख, क्षतिपूर्ति, इलाज और इसके साथ ही अपना जीवन सुचारू रखने के लिए पांच लाख रूपये देने की घोषणा की है।
आखिर क्यों, सरकार इस बात पर ध्यान देने की बजाए कि दोषियों के साथ क्या किया जाए इस बात पर जोर डालती है कि अपराध होने पर पीडि़तों का क्या किया जाए? उसके लिए भी पीडि़तों को भी अपना हक नहीं मिल पाता और उन्हें एक बार फिर हुक्मरानों द्वारा शोषित किया जाता है। इसका एक उदाहरण उत्तर प्रदेश की अर्चना कुमारी के रूप में देखा जा सकता है जिसका शरीर पूरी तरह जल चुका है एक हादसे में अपनी एक आंख और कान को गंवा चुकी है फिर भी सरकार उस युवती से सबूतों की मांग कर रही है कि वह एसिड अटैक की शिकार हैं। उसके बाद ही सरकार उसे आर्थिक सहयोग दे सकेगी।
एसिड को इस पुरूषवादी अमानवीय समाज में इन दिनों महिलाओं के खिलाफ इस्तेमाल किये जाने वाले हथियार के रूप में देखा जाने लगा है। पिछले दिनों रांची के विश्वविद्यालय में लड़कियों के जींस पहनने के विरोध में उन्हें यह धमकी दी गई कि यदि वे जींस पहनेंगी तो उनके चेहरे पर तेजाब डाल उसे खराब कर दिया जाएगा। इससे पहले भी कुछ ऐसे ही किस्मकी वारदातें सामने आ चुकी है जिनमें स्कूल और काॅलेज जाने वाली लड़कियों के चेहरे पर ब्लेड से हमला कर उसे बिगाड़ने की कोशिश की गई। क्यों पुरूष अपनी इच्छाओं के विरूद्ध जाते देख वह अपनी सहन शक्ति खो देता है। कई बार ऐसी ही स्थितियों का सामना महिलाओं को भी करना पड़ता है। फिर क्यों नहीं वह भी इस तरह एसिड या ब्लेड का सहारा ले किसी का चेहरा या जिंदगी को बिगाड़ देने का फैसला ले लेतीं ? पुरूषों को महिलाओं से ऐसी ही समझदारी की सीख लेना जरूरी है। सही मायनों में महिलाएं अपनी सभ्यता, विवेक, बु़द्धि और सहनशीलता का परिचय देते हुए इन्हें शांतिपूर्वक स्वीकार कर लेती हैं।