वन्दना शर्मा

अभी दिल्ली की मेधावी लड़की प्रीति राठी की मौत को ज्यादा समय नहीं बीता जब
मुंबई में वह एक अंजान व्यक्ति द्वारा हमले की शिकार हुई और एक महीने तक जिंदगी और
मौत के बीच जूझने के बाद आखिरकार मौत से हार गई। प्रीति की मौत सिर्फ एक मौत नहीं
बल्कि हमारी नाकाम सुरक्षा व्यवस्था का सबब थी।
गौरतलब है कि अदालत ने अपने फैसले में एसिड अटैक की पीड़िताओं को 3 लाख रूपये की मुआवज़ा
राशि देने का आदेश दिया है हालांकिए अभी पीड़िता के पुनर्वास संबंधित कुछ स्पष्ट
नहीं किया गया है। यह जरूरी है कि इस हमले का शिकार होने वाली महिलाओं को जल्द से
जल्द क सुरक्षित माहौल दिया जाए। उन्हें ईलाज और जरूरी सर्जरी का खर्च मुहैया
कराया जाए। लेकिन वर्तमान स्थिति ठीक इसकी उलट है। हमले की शिकार पीड़िता को चक्कर
लगाने के बाद जो मुआवजा राशि मिलती है वह इतनी थोड़ी होती है कि इससे ईलाज करा पाना
असंभव होता है।
एसिड अटैक एक ऐसी शारीरिक हिंसा और मानसिक शोषण है जो पीड़ित को पल पल मरने को
मजबूर कर देता है। अदालत ने अपने फैसले में इस अपराध को एक गैर.जमानती अपराध बताया
है जिसके लिए न्यूनतम सजा तीन साल तय की गई है। इसी के साथ अपराधी पर 50 हजार का हर्जाना भरना
होगा।
जबकि फिलहाल एसिड अटैक को गंभीर अपराध की श्रेणियों में न रखते हुए
आरोपियों को साधारण बेल पर छोड़ दिया जाता है। अपने इस कुकृत्य के बाद वे साल.छह
महिने की साधारण कैद के बाद अपनी सामान्य जिंदगी जीने लगते हैं जबकि पीड़िता को
पूरी जिंदगी अपने जले शरीर को छुपाते हुए बीत जाती है। जिससे पीड़िता को अपने शरीर
में होने वाली तेज जलन को झेलने के अलावा चेहरे के दागों को साथ लिए चलना पड़ता है।
पीड़ित की ज़िंदगी हमेशा के लिए पूरी तरह बदल जाती है। उन्हें लोगों के बीच जानेए
उनसे मिलने में हीन भावना महसूस होने लगती है।
आखिर क्यों ऐसे अपराध करने के बावजूद इन आरोपियों को समाज स्वीकार कर लेता
हैघ् एसिड को इस पुरूषवादी अमानवीय समाज में इन दिनों महिलाओं के खिलाफ इस्तेमाल
किये जाने वाले हथियार के रूप में देखा जाने लगा है। अक्सर देखा गया है कि इस तरह
के खतरनाक जानलेवा हमले का शिकार महिलाएं तब होती है जब वे किसी पुरूष की बात या
एक तरफा प्यार को ठुकरा देती हैं। दरअसलए ये निर्दोष महिलाएं और लड़कियां उन
पुरूषों के झूठे अहमए अपमान और हिंसा की बली चढ़ रही हैं जिसे वे अपने ठुकराए जाने
पर बेइज्जती समझ बैठते हैं। ऐसी कई वारदातें सामने आ चुकी है जिनमें स्कूल और
कॉलेज जाने वाली लड़कियों के चेहरे पर ब्लेड से हमला कर उसे बिगाड़ने की कोशिश की
गई। क्यों पुरूष अपनी इच्छाओं के विरूद्ध जाते देख वह अपनी सहन शक्ति खो देता है।
कई बार ऐसी ही स्थितियों का सामना महिलाओं को भी करना पड़ता है। फिर क्यों नहीं वह
भी इस तरह एसिड या ब्लेड का सहारा ले किसी का चेहरा या जिंदगी को बिगाड़ देने का
फैसला ले लेतींघ् सही मायनों में महिलाएं अपनी सभ्यताए विवेकए ब़ुद्धि और सहनशीलता
का परिचय देते हुए इन्हें शांतिपूर्वक स्वीकार कर लेती हैं। पुरूषों को महिलाओं से
ऐसी ही समझदारी की सीख लेना जरूरी है।
दरअसल, इस तरह के हमला कर किसी महिला को कुरूप बनाकर या उसकी जिंदगी बर्बाद करने वाले
पुरुष मानसिक रूप से कमजोर होते हैं। इन्हें यह समझ नहीं आता कि इस स्थिति से कैसे
निपटें। उनके दिमाग में हिंसा करने और बदला लेने की भावना घर कर जाती है और वारदात
को अंजाम दे अपराधी बन जाते हैं। हमें अब ऐसे हल खोजने होंगे जिससे कि अन्य
महिलाओं को इन तेजाबी हमलों की हिंसा से बचाया जा सके। जो महिलाएं इस हिंसा की
शिकार हो चुकीं हैं उन्हें जल्द से जल्द अपने पैरों पर खड़े करने के लिए सुविधाएं
मुहैया कराईं जाएं जिससे कि ये भी पहले की तरह मुख्यधारा में शामिल हों सकें।