
पिछले दिनों 17वीं लोकसभा के कार्यकाल के अंतिम क्षणों में संप्रग ने महिलाओं के लिए आरक्षण के बिल पर मुहर लगगवाने की बात उठाई और वह पास नहीं हो सका। यह मात्र दिखावा था। अगर सही में ऐसा कोई कम उठाना था तो दस साल में क्या कोई ऐसा वक़्त नहीं आ सका कि महिलाओं के बिल पर चर्चा की जा सके। चर्चा तो की गई लेकिन ध्वनि मत का भी तो एक अन्य तरीका था जिससे महिलाओं को उनका हक़ मिल सके।
खैर, पार्टी कोई भी आए लेकिन आशा यही है कि 'इस बार जो भी सरकार महिलाओं को मिले उनका अधिकार!' महिलाओं को यदि 33 फीसदी का आरक्षण मिल जाता है तो राजनीति की आधी गंदगी अपने आप साफ हो जाएगी। ऐसा इसीलिए है कि अधिकतर नेताओं की छवि आपराधिक होती है, ऐसे में महिलाओं के बीच दुराचारी महिलाओं की संख्या नगण्य मात्र होती है। महिलाओं को उनके हक़ की आवाज़ को और उपर उठाने के लिए लगातार लड़ना होगा ताकि देश और जनता को सही रास्ता दिखाई देने लगे।