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Saturday, May 10, 2014

इस बार जो भी सरकार महिलाओं को मिले उनका अधिकार!'



लोकसभा चुनाव 2014 के चुनाव के प्रचार का आज आखिरी दिन है। वाराणसी में राहुल का रोड शो और पीछे चलती भारी भीड़।  चुनावों में इस बार महिलाओं को बहुत बढ़ावा दिया गया। नेता चाहे मोदी हो या राहुल—प्रियंका, सभी महिलाओं को एक बड़े वोटर के तौर पर देखने लगे हैं। उनकी सुरक्षा के मुद्दे, उनके अधिकारों और रोजगारों और सम्मान से जुड़े मुद्दों को अपने भाषणों में जगह दे रहे हैं। पार्टियों ने अपना महिला मोर्चा तगड़ा कर दिया है जो इन दिनों काफी सक्रिय दिखाई देने लगा है। स्थिति ऐसी है मानो साल 2014 में ही भारत में महिलाएं अवतरित हुईं हों। आकर उन्होंने कहा हो कि उन्हें भी एक वोटर के तौर पर देखा जाए। महिलाओं को जब नेता इतनी तवज्जो देते हैं तो फिर किसी भी शासन में महिलाओं के ​लिए संसद में 33 फीसदी सीटों के आरक्षण को लेकर आने में आगे क्यों नहीं आया।
पिछले दिनों 17वीं लोकसभा के कार्यकाल के अंतिम क्षणों में संप्रग ने महिलाओं के लिए आरक्षण के बिल पर मुहर लगगवाने की बात उठाई और वह पास नहीं हो सका। यह मात्र दिखावा था। अगर स​ही में ऐसा कोई कम उठाना था तो दस साल में क्या कोई ऐसा वक़्त नहीं आ सका कि महिलाओं के बिल पर चर्चा की जा सके। चर्चा तो की गई लेकिन ध्वनि मत का भी तो एक अन्य तरीका था जिससे महिलाओं को उनका हक़ मिल सके।
खैर, पार्टी कोई भी आए लेकिन आशा यही है कि 'इस बार जो भी सरकार महिलाओं को मिले उनका अधिकार!' महिलाओं को यदि 33 फीसदी का आरक्षण मिल जाता है तो राजनीति की आधी गंदगी अपने आप साफ हो जाएगी। ऐसा इसीलिए है कि अधिकतर नेताओं की छवि आपराधिक होती है, ऐसे में महिलाओं के बीच दुराचारी महिलाओं की संख्या नगण्य मात्र होती है। महिलाओं को उनके हक़ की आवाज़ को और उपर उठाने के लिए लगातार लड़ना होगा ताकि देश और जनता को सही रास्ता दिखाई देने लगे। 

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