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Wednesday, March 28, 2012

किताबों को अब देखें पढ़ें और सुनें...


वन्दना शर्मा
‘न्यू मीडिया‘ ऑनलाइन  पत्रकारिता से बहुत आगे निकल चुका है। अब यह समाचारों और पत्र-पत्रिकाओं तक ही सीमित नहीं रह गई है। न्यू मीडिया का कोई अंत नहीं है यह संभवतः हमेशा ही ‘न्यू मीडिया‘ के नाम से ही जाना जाएगा।
जैसे समाचारों को पढ़ने का तरीका बदला है वैसे ही अब किताबों के पढ़ने का समय भी बदला चुका है। हर दिन एक एडवांस तकनीक के साथ नई-नई इलैक्ट्रिक डिवाइस हमारी पहुंच में आ गई है। अब किताबों के शब्दों को पढ़ा ही नहीं बल्कि देखा और सुना भी जा सकता है।
जहां पहले एक क्लिक से किसी भी किताब को पढ़ा जा सकता था वहीं आज एक बड़ी स्क्रीन पर केवल एक टच की जरूरत रह गई है। आज किताबें अल्मारियों से निकलकर इलैक्टिक डिवाइस में पहुंच चुकी हैं ।
विश्वप्रसिद्ध ऑनलाइन पुस्तक पोर्टल अमेजन डोटकोम  द्वारा 2007 में पेश की गई लैपटाॅप जैसी दिखने वाली डिवाइस ‘काइन्डल‘ जैसी दर्जनों डिवाइस आज हमारे सामने मौंजू हैं।
काइन्डल हथेली में आ जाने वाला यह उपकरण ई-बुक रीडर था और जिसमें ई-इंक टेक्नोलॉजी के जरिये टेक्स्ट छपी हुई सामग्री के तौर पर आ जाता है। काइन्डल ने अमेरिका के ई-बुक रीडर बाजार के 95 फीसदी पर कब्जा कर लिया है। हालांकि एप्पल ने इसे टक्कर दी है।
इसके साथ ही कई अन्य कंपनियों ने अपने आईफोन निकाले हैं जो सस्ते दामों में लोगों तक अपनी पहुंच बना रहे हैं। 2010 में एप्पल ने अपना ई-बुक रीडर निकाला उसके बाद अप्रैल में इसी साल आईफोन भी निकाला। सितंबर तक आते-आते इसकी 80 लाख डिवाइस बिक गईं।
ई-बुक रीडरों की संख्या में लगातार इजाफा देख एप्पल जैसी बड़ी कंपनियों ने केवल किताबों  को पढ़ने के मकसद से ही कई तरह के ई बुक रीडर लाॅंच किये हैं। जिनमें सैंकड़ों किताबें एक साथ समा सकती हैं। इन्हें विश्व के किसी भी कोने में किसी भी भाषा में पढ़ा जा सकता है।
वर्तमान समय मे समय के अभाव में सभी कम-से-कम समय में अधिक से अधिक जानना चाहते हैं। इसलिए किताबों का एक नया रूप हमारे सामने आ रहा है ई-बुकई-बुक का अर्थ है पुस्तक का डिजिटल रूप। ई-बुक के आने से लोगों में यह मिथक टूटने लगा है कि लोगों में पढ़ने में दिलचस्पी घटने लगी है।
आज ई-बुक रीडर से अधिक से अधिक लोग इससे जुड़ने लगे हैं। दुनिया में यह एक बड़ा और तकनीकी बदलाव है। यह तय है कि आने वाले समय में इसमें और बेहतर बदलाव देखने को मिलेंगे। आज आम लोगों में और साथ ही युवाओं में पढने में इच्छा जागी है।
इन किताबों का सबसंे बड़ा लाभ यह है कि ई-बुक ईको फ्रंेडली होती हैं इनके बढ़ते प्रचलन से कागजों की मांग में कमी आई है। आजकल बहुत अधिक संख्या में किताबों के ई-संस्करण निकाले जाते है। बहुत-सी अच्छी तथा लोकप्रिय किताबों को उनके मूल यानी कागजी रूप से इंटरनेट संस्करण के रूप में उपलब्ध कराया गया है।
इन्हें डाउनलोड कर किसी इंटरनेट कनेक्शन की भी कोई आवश्यकता नहीं है। इसके लिये कोई खास मूल्य भी चुकाने की जरूरत नहीं होती। इससे एक लाभ यह भी है कि इन डिवाइसों में पुस्तक को पढते समय हम अपनी आवश्यकतानुसार फोंट का आकार भी बढ़ा सकते हैं जबकि आम पुस्तकों में ऐसा करना नामुंकिन है।
इन किताबों का ऑडियो  संस्करण भी इस्तेमाल किया जा सकता है। जिन पुसतको केे लिये मूल्य चुकाने की सुविधा होती है उन पर पाठक की सुविधा कि लिये पुस्तकों को खरीदने से पहले उसका कुछ हिस्सा लेकर पढ भी सकते है।  आज हम एक साथ हजारों किताबों को अपनी हथेली में लकेर चल सकते हैं। आप उन्हें कहीं भी बैठ कर आराम से पढ़ने में सक्षम हैं।
आजकल किताबो के डिजिटल रूप के पाठक सबसे ज्यादा युवा ही हैं। ऐसा इसलिये है क्योंकि युवाओं का ही इतना बड़ा प्रतिशत है जो तकनीक के प्रयोग में सबसे अधिक सक्रिय है। इस स्थिति को देखते हुए देश विदेश की अधिकतर यूनीवर्सिटीज और स्कूलों ने अपनी ऑनलाइन लाइब्रेरी का निर्माण किया है। जिससे छात्रों को कोर्स से संबंधित किताबों को डाउनलोड कर पढने में आसानी होती है। अब उन्हें किताबों के ढेर में एक-एक किताब को हाथ में लेकर नोट्स की जरूरत नहीं रह गई है।
हाल ही में, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय ने भी अपनी ऑनलाइन लाइब्रेरी का विमोचन किया है। जिससे दूर-दराज के छात्रों को पढाई करने में लाभ मिल रहा है। वहीं भारत के 10 हजार पब्लिक स्कूल ऐसे हैं जिनमें डिजिटल रूप में किताबें पढ़ाई जा रही हैं।
आज एक छोटे से उपकरण पर कहीं भी कसी भी भाषा में अपनी इच्छानुसार कोई भी किताब पढ़ने से सभी के सामने एक बहुत बेहतर विकल्प आया है।  पढ़ाई के क्षेत्र में यह सबसे अधिक कारगर साबित होता है।
प्रेमचंद के गोदान-गबन से लेकर रस्किन बोंड  , चेतन भगत और सभी की किताबों को हम एक साथ अपनी हथेली में रखकर कहीं भी बिना किसी ज्यादा बोझ केे लेकर आ-जा सकते हंै। विज्ञान, समाज, कथा-धर्म या किताबों के ईश्यू चाहे कुछ भी हों हमें ऑनलाइन कोई भी किताब आसानी से इंटरनेट पर मिल जाती हंै।
इस डिजिटल युग में इस तरह ई-बुक के बढ़ते बाजार और मांग को देखते हुए यह संभावना नजर आ रही है कि आने वाला समय ई-बुक का ही है। भारत के इस डिजिटल बाजार में  डिजिटल सॉफ्टवेयर  इंडस्ट्री की मांग भी 28 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। यह पूरी संभवना है कि आगे इसका बाजार लगातार बढ़ेगा।


Sunday, February 19, 2012

वैकल्पिक पत्रकार बन चुके हैं- सिटिजन जर्नलिस्ट


न्यू मीडिया के बढ़ते प्रचलन से आज दुनिया में इसके कई रूप सामने आए हैं। मीडिया का चेहरा हर दिन बदलता जा रहा है जो अपने साथ एक नयापन लिए बेखौफ होकर चलता जा रहा है। अनेक क्षेत्रों को न्यू मीडिया ने अपने अंदर समेट लिया है।
न्यू मीडिया ने एक बड़ा मंच दिया है सिटिजन जर्नलिस्ट को। न्यू मीडिया में सिटिजन जर्नलिस्ट की परिकल्पना को अभी ज्यादा समय भी नहीं हुआ है और आम जन के बीच पूरी तरह से फैल गया है। सिटिजन जर्नलिज्म के कारण ही आज मीडिया की बची- खुची विश्वसनीयता कायम है।
मीडिया की पारदर्शिता के लिए सिटिजन जर्नलिज्म बहुत महत्वपूर्ण बन गया है। अब दर्शक या पाठक अपनी भूमिका को बेतरह समझने लगा है। ‘लैटर-टू-एडिटर‘ या ‘हां या ना‘ के संदेशों से आगे निकलकर दर्शक अधिक सक्रिय हो गया है। आम आदमी सूचनाओं को हथियार के तौर पर प्रयोग करने में सक्षम हो चुका है।
वेब जर्नलिज्म ने सिटिजन जर्नलिज्म को एक अच्छी दिशा प्रदान की है। ब्लॉग, वेबसाइट्स या सोशल नेटवर्किंग के माध्यम से लोग अपनी स्टोरी कवरेज को अन्यों तक पहुंचाने में कामयाब हैं। हजारों लोगों ने किसी खास मुद्दे को लेकर अपनी बेवसाइटें बनाई हुई है और खुद के साथ अन्यों को भी जोड़ा।
भारम के उत्तरी-पूर्वी राज्यों में आज भी मीडिया अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो सकी है इसलिए वहां की जनता ने खुद ही संयुक्त योगदान से न्यूज कलेक्शन शुरू कर दिया। इसे आम लोगों के लिए खुला रखा गया हैतिसमें अपने क्षेत्र की कोई भी खबर या स्टोरी का अपलोड कर सकता है।
अपनी बात को लोगों तक पहुंचाने के लिए एक सिटिजन जर्नल्स्टि को कई बुनियादी चीजों की जरूरत होती है। अपनी रिपोर्ट या स्टोरी को वे अपनी हैंड कैमेरा, फोन, इंटरनेट, या फिर वॉयस रेकॉर्डिंग  के जरिये लोगों  या कम्यूनिटीज के बीच पहुंचाते हैं। सिटिजन जर्नलिस्ट आज बिना किसी प्रोफेश्नल ट्रेनिंग के ही अपनी बात एक बड़े स्तर प्रेषित कर सकते हैं। जिससे बिना किसी व्यय के सूचना एक बड़े पैमाने पर खड़ी हो बिना समय लगाए तुरंत पहुंच जाती है।

जहां एक ओर वेब परियोजनाओं में लोग अपनी रचनाओं, लेखों या विचारों को भेज उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं वहीं सोशल नेटवर्किंग साइटों में विचार रखने के साथ-साथ बहस का मचं बना रहे हैं । समाचार पत्र, खबरिया चैनल और वेबसाइट्स आदि सभी अपने साथ सिटिजन जर्नलिस्ट को भी आवश्यक स्थान देने लगे हैं। आज आम लोगों द्वारा अपने ब्लॉग  पर किसी विशेष विषय पर किये गए लेखन को ब्लॉग  से समाचार पत्रों में विशिष्ट कॉलम  दिया जाने लगा है।
सिटिजन जर्नल्स्टि के तौर पर काम करते हुए कुछ नागरिकों ने देश के लिए एक मिसाल भी कायम की है । जिसे आज भी लोग सम्मान से देखते हंै। इसका एक अच्छा उदाहरण विजय लक्ष्मी को माना जा सकता है जिसने लोकल ट्रेनों में  महिलाओं के साथ होने वाली छेड़खानी से क्षुब्ध हो, संबंधित विभागों में धक्के खाकर आखिर महिलाओं को अपना हक दिलवाया, और एक महिला कोच की व्यवस्था करवाई।
ऐसी ही एक और कहानी शिव प्रकाश राय की भी रही, जिन्होंने अपने ऊपर लगे हेरा फेरी के झूठे मामले के लिए कई साल तक लंबी लड़ाई लड़ी और घूस के असली आरोपियों (सरकारी अधिकारी) का चेहरा लोगों के सामने लाये। 
आरटीआई ने आम जनता को एक बड़ा हथियार दिया है जिससे लोग अपनी आवश्यकतानुसार संबंधित विषय की जानकारी लेकर संबंधित विभाग की खामियों को आमजन से रूबरू करा देते हैं।
सिटिजन जर्नलिस्ट के इस बड़े योगदान को यहां तक पहुंचाने का भी श्रेय मीडिया को ही जाता है। इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण आईबीएन-7 के रूप में देखा जा सकता है। राजदीप सरदेसाई ने जब इस चैनल की शुरूआत की तो चैनल की थीम सिटिजन जर्नलिस्ट ही रखकर लॉन्च किया गया था।
भारत में सिटिजन जर्नलिज्म को अभी और विस्तार करने की जरूरत है।  फिलहाल भारत में सिटिजन जर्नलिस्ट के रूप में भूमिका निभाने वाले जागरूक नागरिकों के पास अभी तक तकनीकी सुविधाओं की कमी है। समय के साथ -साथ उनके पास इस दिशा में सुधार होना लाजमी है तब ही भारत में एक विकसित सिटिजन जर्नलिज्म का होना संभव हो सकेगा। यदि सिटिजन जर्नलिज्म एक ओर सूचनाओं को प्रवाह देता है तो वहीं पारंपरिक मीडिया घरानों की तरह यहां भी इसका नकारात्मक पहलू सामने आ जाता है।
इसके नकारात्मक पहलू को ‘पीपुलराज्जी‘ के नाम से जाना जाता है। समाज के प्रतिष्ठित लोगों से जुड़े तथ्यों को तोड़ मरोड़कर पेश करने वाले सिटिजन जर्नलिस्ट इस क्षेत्र में घुन का काम करता है।
कुछ सालों पहले किसी व्यक्ति ने यक ऐसी वीडियो तैयार कर वेबसाइटों पर डाल चैनलों तक भी पहुंचाई थी जिसमें साईंबाबा की आंखों से आंसू निकल रहे थे। हालांकि इसे बाद में झूठी फुटेज साबित कर दिया गया था। इस वीडियो को देख लाखों भक्त मंदिर में पहुँच गए थे जिनकी भावनाओं को केवल ठेस पहुंची। 
लोग बेवजह नाम कमाने के लालच में आकर झूठे और अटपटे फुटेज बनाकर पेश कर दते हैं। जो समाज या किसी अन्य व्यक्ति के लिए मानहानि से जुड़ा मुददा बन जाता है। इसलिए सिटिजन जर्नलिस्ट के साथ सतर्कता भी बरतनी जरूरी हो जाती है।  
गर गौर किया जाए तो लोकतंत्र के हनन और आम नागरिकों की उपेक्षा के जवाब में सिटिजन जर्नलिस्ट आगे आए हैं। फिर भी सतर्कता को कायम रखते हुए सच कहा जाए तो, सिटिजन जर्नलिज्म एक वैकल्पिक मीडिया मंच ही है।