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Wednesday, February 22, 2012

देखें इन मेहनतकशों को...

आज कुछ मेहनतकश लोगों से रू- ब- रू होने का मौका मिला.ये सभी बुनकर दिल्ली में राजघाट पर तीन दिनों के लिए 'बा' को श्रद्धांजलि देने के लिए यह आये  हैं.  हम सभी के लिए ये सुन लेना आम बात है कि इन बुनकरों को अपनी मेहनत का कुछ भी हिस्सा नही मिल पाता. जब मॉल में जाकर हम लोग महंगे कपड़े खरीदते हैं तब एक बार कम से कम एक बार इन गरीबों का चेहरा ध्यान कर लेना चाहिए. पूरे भारत में आज भी जगह- जगह अपनी महनत और कला को किसी तरह ये लोग बचानकी कोशिश में जुटे हुए हैं. इस परेशानी को लेकर सरकार तक ने इनके हित में अभी तक कोई कदम नही उठाये हैं . क्या सरकार इनके ख़त्म होने का इंतज़ार कर रही है?

इनके बीच बैठकर एक और बात पता चली कि चरखा या सूत कातने का काम अधिकतर महिलायें या बच्चे ही किया करते हैं. लेकिन इनसे जो कमाई होती है वो पुरुषों की जेब में ही जाते हैं. इसके लिए इन बुनकर महिलाओं को आगे आने की कोशिश करनी चाहिए ताकि अपना अधिकार पा सकें.
ये जानकार आपको आश्चार्य होगा कि सरकार ने बीते साल भारत से 20 बुनकरों को चीन भेजा ताकि वे वहां के लोगों को साड़ियाँ बनानी सिखा सकें...जब चीन ये सब सीखने जा रहा है तो क्या भारत इसे ख़त्म क्यों करना चाहता है.