वो तो तुम आये और
हमें तन्हा करके चले गए
शायर तो नहीं थे हम
शायर हमे तुम्हारी जुदाई ने बना दिया
हम तो खड़े ही वहां हैं
हम तो खड़े ही वहां हैं
जहां से तुम हाथ झटक कर चले आये
अब इतने ख़फा हो हमसे के
अनसुनी कर दी हमारी हर एक बात
रख लो सारी बेरुखी और वो सब एहसास अपने पास
नहीं संभलते हमसे अब
हम दोनों के ये अधूरे और टूटे संवाद.....
उम्मीद से बढ़कर लिखा है! ऐसा लेखन जारी रखें.
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