बड़ी धूम धाम के साथ मनाया जाने वाला खुशियों का त्यौहार दिवाली हर साल की तरह इस साल भी एक ख़तरा ही देकर गया. पटाखों के धुंए से इस बार भी दिवाली पर केवल दिल्ली में ही सामान्य से तीन गुना अधिक प्रदूषण फैला. यह सांस और दमे की बीमारी को बढ़ावा देने वाला जहरीला धुंआ है. जो हर साल ना जाने कितने लोगों की जानें लील देता है. इन पटाखों से केवल प्रदूषण का ही खतरा ना होकर दुर्घटना तथा आर्थिक नुक्सान भी होता है.
इस बार भी दिवाली के मौके पर कई फेक्टरियों में आग लगी और जान माल का भारी नुक्सान हुआ. गाजीपुर सब्जी मण्डी में एक पटाखे की दुकान में लगी आग से एक साथ 10 दुकाने जल कर ख़ाक हो गई. इससे पता चलता है कि जहां इन पटाखों को रखा जाता है वो जगह सुरक्षित नही होती. कम स्थान में अधिक सामान भरने से दुर्घटनाओं का होना तो स्वाभाविक ही है.
ऐसी दुर्घटनाओ से बचने के लिए सरकार को लाइसेंस के अलावा एक पैमाना तैयार करना होगा कि इकाई के रूप में एक घर को कितने पटाखे दिए जाएँ. आमतौर पर देखा जाता है कि धनाड्य वर्ग के लोग अधिक से अधिक पटाखे जला कर अपने स्टेटस दिखाने की जुगत में लग जाते हैं. हालांकि वे इससे अपनी सेहत से खिलवाड़ कर बैठते हैं. खुशियों का त्यौहार अगर किसी तरह की चिंता या अशुभता लाये तो सरकार को सचेत हो इनसे सबक लेना चाहिए. अधिक प्रदूषण वाले पटाखों को बैन करे और कम प्रदूषण वाले पटाखों को बढ़ावा देना चाहिए. इस सम्बन्ध में लोगों से कारगर तरीकों से अपील भी की जा सकती है.
इस बार भी दिवाली के मौके पर कई फेक्टरियों में आग लगी और जान माल का भारी नुक्सान हुआ. गाजीपुर सब्जी मण्डी में एक पटाखे की दुकान में लगी आग से एक साथ 10 दुकाने जल कर ख़ाक हो गई. इससे पता चलता है कि जहां इन पटाखों को रखा जाता है वो जगह सुरक्षित नही होती. कम स्थान में अधिक सामान भरने से दुर्घटनाओं का होना तो स्वाभाविक ही है.
ऐसी दुर्घटनाओ से बचने के लिए सरकार को लाइसेंस के अलावा एक पैमाना तैयार करना होगा कि इकाई के रूप में एक घर को कितने पटाखे दिए जाएँ. आमतौर पर देखा जाता है कि धनाड्य वर्ग के लोग अधिक से अधिक पटाखे जला कर अपने स्टेटस दिखाने की जुगत में लग जाते हैं. हालांकि वे इससे अपनी सेहत से खिलवाड़ कर बैठते हैं. खुशियों का त्यौहार अगर किसी तरह की चिंता या अशुभता लाये तो सरकार को सचेत हो इनसे सबक लेना चाहिए. अधिक प्रदूषण वाले पटाखों को बैन करे और कम प्रदूषण वाले पटाखों को बढ़ावा देना चाहिए. इस सम्बन्ध में लोगों से कारगर तरीकों से अपील भी की जा सकती है.
इस प्रकार की नीति हिन्दुओं के पर्वों पर ही क्यों? यदि पटाखे अधिक जलाने से पर्यावरण दूषित होता है तो बकरीद पर पशुहत्या-गोहत्या से पशुधन भी कम होता है. आपको लगता नहीं की इसी प्रकार से बकरीद जैसे हिंसक पर्वों के लिए भी कुछ नियमावली होनी चाहिए...
ReplyDeletejee maine ye article diwali ke virodhswaroop nhi likha hai balki pradooshan par chintaa vyakt ki hai.aapki baat se mai sahmat hoon.PETA ko bakreed jaise maukon par logon se apeal karni chahiye..
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