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Sunday, January 1, 2012

पहले की तरह होना ही पड़ता है...

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सुबह नींद जल्दी खुल गई थी। बाहर झांककर देखा तो कुछ बच्चे बड़े-बड़े बैग लिए बातें करते स्कूल जा रहे थे। दोनों अपनी सी उम्र की उलझनों को आपस में शेयर कर रहे थे। उनमें से एक छोटी लड़की ने पहले अपनी बात रखी। उसका कहना था कि उसकी हिंदी विषय की नोटबुक कहीं खो गई है, जो आज स्कूल में चैक भी होनी है। इस पर दूसरे का कहना था कि आज उसका साइंस का टैस्ट है जिसके बारे में उसने कुछ नहीं पढ़ा। सुनकर मुझे भी अपने स्कूल के बीते दिन याद आ गए जब मैं भी इसी तरह अपनी कई बचकानी सी बातों पर परेशान हो बैठती थी।खैर, ये तो बच्चों की अपनी-अपनी छोटी मगर उनके लिए बड़ी परेशानियां होती हैं। जो
टीचर की एक डांट के बाद मानो खत्म ही हो जाती है। लेकिन जब हम बड़े हो जाते हैं तब  परेशानियां भी हमारे साथ-साथ बड़ी होती जाती हैं। घर की, करियर की चिंता और न जाने कितनी तरह की परेशानियों के बोझ को हम अब अपने साथ लिये चलते हैं। 

जब हम किसी परेशानी में पड़ जाते हैं तो कभी-कभी उनसे उबर पाना भी मुश्किल हो जाता है। समस्याएं ऐसा विकराल रूप ले जाती हैं कि कोई रास्ता न.जर नहीं आता। मन में एक खमोशी सी पसर जाती है। सबकुछ छोड़ कहीं दूर भागने का मन करने लगता है। लेकिन विडंबना है कि हम चाह कर भी ऐसा कुछ नहीं कर सकते।
उस बुरे वक्त में हंसी भी हंसने जैसी नहीं लगती। उदासियों में सिर्फ अकेलापन अच्छा लगने लगता है। पास बैठा शख्स अगर किसी बात पर हंसने लगे तो वो बहुत बुरा लगने लगता है। परिवार और मित्रों से हमारे बीच के फासले बढ़ जाते हैं। ऐसा महसूस होता है कि हमें सिर्फ जीना है। न कुछ अच्छा पहनने का मन और न कुछ लजीज खाने की इच्छा।
 
उन सबके बावजूद हम हिम्मत नहीं हारते और कुछ वक्त बाद हमें पहले की तरह होना ही पड़ता है। धीरे-धीरे सब लौट आता है। जख्म भरने लगते हैं। मन और कठोर होकर हमें सहन करने की एक शक्ति दे जाता है। उदासियां भी बहुत कुछ सिखा जाती हैं। ध्यान दिया जाए तो इसी समय यह पता चलता है कि जब कोई पास नहीं होता तब सिर्फ एक हमारा परीवार ही हमारा रह जाता है। बाकी सबकी जिंदगी वैसी ही चलती रहती है।  

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