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Thursday, August 18, 2011

क्रांतिकारी युवाओं के आदर्श थे नेताजी


भारत के अग्रणी स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चन्द्र बोस का नाम भारतीय इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में अंकित है. नेताजी अपने अद्वितीय और गौरवशाली व्यक्तित्व के कारण देश के युवाओं के आदर्श बन गए थे. उन्होंने मातृभूमि की रक्षा को अपना लक्ष्य बनाया. नेताजी ने आई.सी.एस जैसी प्रतिष्ठित नौकरी, जिसे प्राप्त करने का अवसर अब तक किसी भारतीय को नही मिल था उसे त्यागकर देशसेवा को प्राथमिकता दी.
“आज हमारी मातृभूमि विदेशी-विधर्मी पापियों की दासता में जकड़ी हुई है. माँ मुझे आशीष दें कि मैं भारत भूमि की मुक्ति के लिए कुछ कर सकूं”
नेताजी का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक में हुआ था. उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माता का नाम प्रभादेवी था.  नेताजी ने अपना संपूर्ण जीवन देश सेवा में लगा दिया. उन्होंने सत्य की खोज के लिए अपने जीवन में अनेक यात्राएं की. उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा कोलकाता तथा कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पूरी की. इसके बाद उन्होंने इंग्लैंड से सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण की.  नेताजी पहले भारतीय थे जिन्होंने यह परीक्षा उत्तीर्ण की लेकिन उन्होंने इसे लात मार देशसेवा को ही अपना लक्ष्य बनाया. इस सन्दर्भ में उन्होंने अपने बड़े भाई शरतचंद्र को पत्र लिखकर बताया-
सिविल सर्विस से व्यक्ति को सभी प्रकार के सुख तो मिल सकते हैं लेकिन क्या सुख एवं वैभव के लिए अपनी आत्मा को कुचलना,  देश के लिए दायित्व को छोड़ देना उचित कहा जा सकता है? ” उन्होंने आगे लिखा “मैं इस समय चौराहे पर खड़ा हूँ और किसी भी प्रकार का समझौता संभव नही है. मुझे या तो इस सड़ी-गली सर्विस को लात मार देनी चाहिए और देश कि सेवा में पूरी तरह लग जाना चाहिए अथवा अपने समस्त आदर्शों एवं उमंगों का त्याग कर देना चाहिए और सर्विस में भर्ती हो जाना चाहिए”. उन्होंने अपनी माँ को भी पत्र लिख कहा कि “आज हमारी मातृभूमि विदेशी-विधर्मी पापियों की दासता में जकड़ी हुई है. माँ मुझे आशीष दें कि मैं भारत भूमि की मुक्ति के लिए कुछ कर सकूं”(नेताजी सुभाष चन्द्र बोस; शिवकुमार गोयल)
इंग्लैंड में अपनी पढ़ाई पूरी कर वे भारत लौटे और गांधी जी के विचारों से प्रभावित हो असहयोग आन्दोलन में भाग लिया. उन्होंने ही गांधी जी को सर्वप्रथम ’राष्ट्रपिता’ कहकर सम्मान दिया.
अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान के सहयोग से 1943 में आज़ाद हिंद फौज की स्थापना की. इस फ़ौज में लड़कियों ने भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. इसमें ’झांसी की रानी’ नाम की एक अलग रेजिमेंट बनाई गयी. उन्होंने देश को ’जय हिंद’ का नारा दिया जो भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया. देशवासियों से उन्होंने कहा कि
“मैं विश्वास दिला दूं कि अँधेरे में, उजाले में, गम और ख़ुशी में, कष्ट सहन और विजय में मैं आपके साथ ही रहूँगा. इस समय मैं तो आपको भूख, प्यास, कठिनाई और मृत्यु के अतिरिक्त कुछ नहीं दे सकता. किन्तु यदि आप मेरा साथ जीवन और मरण में दे, जैसा कि मुझे विश्वास है कि आप जरूर देंगे, तो मैं आपको विजय और स्वतंत्रता तक पहुँचा दूंगा”.(क्रांतिवीर सुभाष; गिरिराजशरण अग्रवाल)
इस बात पर अडिग हो उन्होंने देश के नौजवानों से “तुम मुझे खून दो, मै तुम्हे आजादी दूंगा” का नारा देकर देश के लिए बलिदान का आह्वान किया.
आज़ाद हिंद फ़ौज का नेतृत्व संभालने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने 23 वर्ष की छोटी सी उम्र में घर त्याग स्वयं को पूर्ण रूप से भारत माता को समर्पित कर दिया था. 18  अगस्त 1945  के दिन भारत को अपने इस वीर पुत्र को खोना पड़ा. आज से 66 वर्ष पूर्व ताइवान के ताइहोकू में एक विमान हादसे में नेताजी  को महज 48  वर्ष में ही जान गंवानी पड़ी. उनकी मृत्यु पर आज भी संशय किया जाता है कि हवाई दुर्घटना स्वाभाविक थी या किसी के द्वारा कराई गई थी. लेकिन हाल ही में मुंबई के एक युवक मनोरंजन रॉय ने सर्वोच्च न्यायालय में आर.टी.आई. दाखिल कर यह सूचना ली कि नेताजी की मौत कब, कहाँ और कैसे हुई थी? इसके जवाब में स्पष्ट किया गया कि भारत सरकार ने नेताजी की गुमशुदगी का पता लगाने के लिए तीन समितियां व आयोग गठित किये थे. जिसमें से दो आयोगों ने निष्कर्ष निकाला कि उनकी मृत्यु विमान हादसे से हुई जबकि एक आयोग इसे आंशिक रूप से मानता है. ऐसा माना जाता है कि उनकी मृत्यु ताइहोकू में होने के कारण उनकी अस्थियों को टोक्यो ले जाया गया. टोक्यो के रेनकोजी मंदिर में उन्हें सुरक्षित रखा गया है. यह कहना उचित ही होगा कि नेताजी जैसे महान व्यक्तित्व के प्रणेता भारत में शायद ही फिर कभी इस भूमि पर दोबारा जन्म ले. उनकी पुण्य तिथि पर उन्हें शत-शत नमन!

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