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Monday, September 5, 2011

जरूरी है बेहतर शिक्षा और शिक्षण


सितम्बर को पूर्व राष्ट्रपति  डॉ. सर्वपल्ली  राधाकृष्णन के जन्मदिवस के अवसर को पूरे भारतवर्ष में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है. उनका जन्म वर्ष 1888  में तमिलनाडु के एक गरीब ब्रह्माण परिवार में हुआ था. उन्होंने अपने जीवन के 40  वर्ष एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किये. वर्ष 1962 से ही  उनके सम्मान में इस दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता रहा है.  डॉ. राधाकृष्णन को भारत में एक आदर्श शिक्षक समझा जाता है. 
उनका मानना था कि शिक्षक उन्हीं लोगों को बनाया जाना चाहिए जो सबसे अधिक बुद्धिमान हों. शिक्षक को मात्र अच्छी तरह अध्यापन करके ही संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए. उसे अपने छात्रों का स्नेह और आदर अर्जित करना चाहिए. सम्मान शिक्षक होने भर से नहीं मिलताउसे अर्जित करना पड़ता है.   
 वर्त्तमान समय में भारतीय शिक्षा का स्तर थोड़ा सुधरा है लेकिन यह अभी भी चिंताजनक ही हैभारत में सरकारी आंकड़ों के अनुसार 20 करोड़ बच्चे (6-14 वर्ष) ऐसे हैं जो स्कूल जाने से आज भी वंचित हैं. वहीँ गैर सरकारी आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि ऐसे बच्चों की संख्या 50 करोड़ है. वयस्कों के स्तर की शिक्षा पर गौर किया जाए तो 74.04% है जो वर्ष 2001 में पहले 64.84% था. भारत में सबसे अधिक शिक्षित राज्य केरल है जिसकी साक्षरता दर 100% है और सबसे कम साक्षरता दर वाला राज्य दशकों से आज भी बिहार ही है. भारत में आज जो शिक्षा प्रणाली अपनाई जा रही है वह व्यवसायिकता के पीछे दौड़ रही है. बड़े नामों वाले स्कूल या संस्थान किसी छात्र को शिक्षा देने के नाम पर एक बड़ी धनराशि ऐंठ लेते हैं. आज इंजीनियरिंग की पढ़ाई कराने वाले संस्थान दुकानों की तरह खुल गए हैं जिससे शिक्षा की गुणवत्ता में कमी दिखाई देने लगी है. आईआईटी जैसे उच्चस्तरीय शिक्षण संस्थान में दाखिला लेना आज छात्रों का एकमात्र लक्ष्य रह गया है. यह  संस्थान मोटी रकम लेकर भी इन छात्रों को बाजारीकरण की प्रतिस्पर्धा में खड़ा करने में पूर्ण रूप से सफल नही हो पा रहे हैं. वहीँ एक अपवाद के रूप में काम कर रहे बिहार के आनंद कुमार जिन्हें 'सुपर 30' के निर्देशक के रूप में जाना जाता है, ने गरीब छात्रों को आईआईटी के लिए निशुल्क शिक्षा देने का कार्य कर रहे हैं. अब तक उनके पढ़ाए सभी छात्र सफल हुए हैं. आनंद ने अपने जीवन में शिक्षा के विस्तारीकरण को ही अपना मिशन बनाया.    
डॉ. राधाकृष्णन कहा करते थे कि मात्र जानकारियां देना शिक्षा नहीं है. यद्यपि जानकारी का अपना महत्व है और आधुनिक युग में तकनीक की जानकारी महत्वपूर्ण भी है तथापि व्यक्ति के बौद्धिक झुकाव और उसकी लोकतांत्रिक भावना का भी बड़ा महत्व है. ये बातें व्यक्ति को एक उत्तरदायी नागरिक बनाती हैं. शिक्षा का लक्ष्य है, ज्ञान के प्रति समर्पण की भावना और निरंतर सीखते रहने की प्रवृत्ति. वह एक ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्ति को ज्ञान और कौशल दोनों प्रदान करती है तथा इनका जीवन में उपयोग करने का मार्ग प्रशस्त करती है. करुणा, प्रेम और श्रेष्ठ परंपराओं का विकास भी शिक्षा के उद्देश्य हैं.  डॉ. राधाकृष्णन को उनके योगदान के लिए देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा  'भारत रत्न' का अलंकरण दिया गया था. आशा है कि भारत में शिक्षा का स्तर आने वाले समय में शत-प्रतिशत हो सकेगा.    


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