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Monday, January 2, 2012

सियासी दांवपेचों में फंसी जनता


शीतकालीन सत्र को आगे बढ़ाकर देर रात तक उस पर बहस होने के बावजूद, उसे फाड़ कर फेंक देना, शोर मचाना और फर अनिश्चितकाल के लिए टाल देना. सरकार और अन्य राजनैतिक दलों का यह रुख देख साफ़ हो चुका है की कोई भी दल इस बिल को  पास कराने के मूड में नही है. उधर ममता दी जो खुद कांग्रेस का ही घटक है  सहमति नही जता पा रही है

187 संशोधनों को लेकर विवाद पैदा कर यह माहौल बनाया गया है कि एक विराट समस्या के चलते बिल वापिस अटक गया. जनता और अन्ना टीम को चुप रहने के लिए आश्वासन दिया गया कि आगे इस पर बात की जायगी. वहीँ अन्ना टीम के जादू का असर भी कुछ कम दिखने लगा है.


 सवाल ये है की जनता क्या सिर्फ भीड़ जुटाने और फिर सरकार के बहकावे में आने के लिए रह गई है. आरोप-प्रत्यारोप  तो शुरू से ही अन्ना टीम और सरकार के साथ-साथ चले हैं लेकिन अब जनता का क्या होगा जो इस धोखे  का शिकार बन गई. अपना काम काज छोड़ जो लोग दिन रात सड़कों पर 'भारत माता की जय' और 'भ्रष्टाचार छोड़ोके नारे लगाते रहे उनका क्या? सियासी दांवपेचों में जनता हमेशा से पिसती आई है क्या यह आगे भी यू हीं पिसती रहेगी?  

जनता के साथ इस तरह खिलवाड़ करना लोकतंत्र ना होकर तानाशाही ही है. जब भोली भाली जनता को राजस्व में भारी नुकसान का हवाला देकर डीजल और पेट्रोल से लेकर खाद्य पदार्थों की कीमतों में भारी बढ़ोत्तरी की जाती है. और उसी दौर में छोटे बड़े पदों पर तथाकथित काम करने वालों के पास अरबों की संपत्ति (आय से अधिक) पाई जाती है. इनके साथ भी वही होगा जो कनिमोझी के साथ हुआ थोड़े ही दिनों में अपने घर वापिस लौट आना....लेकिन सरकारी नुकसान की भरपाई करने के लिए जनता को ही आगे कर दिया जाता है कोई इनसे कुछ अपेक्षा क्यों नही करता?

4 comments:

  1. बेचारी जनता ......

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  2. जनता फुटबाल की तरह हो गई है. जिधर भी जाती है लात ही खाती है.

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  3. Aap bilkul shi keh rhe hain Amit ji. Janta football jese laat khau halato ka saamna kar rhi h.

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