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Tuesday, July 17, 2012

इंटरनेट से हम भी हो रहे हैं प्रभावित


समय जैसे-जैसे भागता है वह अपने पीछे हमारे लिए कुछ न कुछ छोड़कर चलता जाता है। यह समय की खूबी भी है और कमी भी। हम खुद को इस कदर ढ़ाल चुके हैं कि अब इंटरनेट हमारे लिए न होकर हम इंटरनेट के लिए ही हो गए हैं। आज जिस स्तर से सूचना तकनीक और प्रौद्योगिकी रिकॉर्ड तोड़ बुलंदियों को छू रही है  उसी स्तर से लोगो का भी प्रभावित होना तय है। तकनीक से आज किसी भी वर्ग का व्यक्ति अछूता नहीं रह गया है।

एक बड़े स्तर पर सोशल नेटवर्किंग के माध्यम से फैलती ये सूचनाएं एक ओर तो लोगों को पास लाने-आपस में जोड़ने का दावा करती हैं तो वहीं ये दूसरी ओर लोगों को एक-दूसरे से दूर करने का भी काम कर रही हैं। यह हमारे बीच एक बड़ी समस्या का रूप धारण करने जा रही है। हालांकि अभी हम इसके प्रभाव या परिणामों के आंकलन कर पाने से ज्यादा इसके शिकार बनने में ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं। जो हमें एक ग़लत दिशा में बढ़ने को उकसा रहा है।
आलम ऐसा हो गया है कि हमें यह जानकारी तो पूरी होती है कि फेसबुक पर किसने कब क्या अपडेट किया है लेकिन बगल वाले घर में कौन रहता है इसकी कोई खबर नहीं!
हाल ही में, यह बात सामने आई है कि युवाओं के सोशल नेटवर्किंग साइट्‌स का अधिक इस्तेमाल करने से बुजुर्गों का भी सम्मान घट रहा है। जी! हाल ही में हुए एक सर्वे में यह पाया गया है कि 55 वर्ष से अधिक की उम्र के 81 फीसदी लोगों ने यह माना कि उनके युवा बच्चे इंटरनेट के आदि होने के कारण उनकी बात पर ध्यान नहीं देते। उनका सम्मान नहीं करते हैं।
यह बात गौर करने लायक है कि केवल भारत में नौ करोड़ से अधिक इंटरनेट उपभोक्ता है। जिनमें से 93 फीसदी लोग स्मार्टफोन के ज़रिये इंटरनेट का इस्तेमाल और 88 फीसदी देर रात तक फेसबुक से चैटिंग करते हैं। इंटरनेट अब लोगों के जीवन को पूरी तरह प्रभावित कर चुका है। यूरो आरएसजीसी द्वारा किए गए सर्वे से यह बात सामने आई है कि इंटरनेट के इस्तेमाल से 69 फीसदी लोग शारीरिक रूप से और 64 फीसदी आलसी हो गए हैं। लोग अपना अधिकांश समय स्क्रीन के आगे बैठे-बैठे बिता देते हैं।
कुछ चौंका देने वाले ऐसे आंकड़े भी सामने आए हैं जिनमें 32 फीसदी भारतीय अभिभावकों ने यह माना है कि उनके बच्चे तकनीक और प्रोद्योगिकी का ग़लत रूप से इस्तेमाल कर रहे हैं। 
हाल ही में, जापान के शिक्षाशास्त्रियों ने यह चिंता जताई है कि उनके बच्चे बिना कैलकुलेटर के जोड़ना घटाना ही भूल गए हैं। वहीं चीन में ऐसे केंद्रों की स्थापना की जा रही है जहां बच्चों को केवल इसलिए भेजा जाता है ताकि वे वहां रहकर कुछ समय के लिए खुद को इंटरनेट से दूर रख सकें।
इंग्लैंड में हुए ताजा सर्वे से यह बात पता चली है कि साल में जितने तलाक होते हैं उनके एक-तिहाई फेसबुक के कारण होते हैं। बल्कि अब यह प्रवृति भारत में भी देखी जा रही है।
बीते माह तमिलनाडु राज्य के छोटे से शहर में एक पत्नी ने अपने पति को इसलिए तलाक दे दिया कि उसने फेसबुक पर अपनी सही जानकारी नहीं दी थी। अदालत के अनुसार फेसबुक पोस्ट व फोटो मानसिक  क्रूरता के साक्ष्य बन सकते हैं।
यह तो बात हुई एक व्यक्तिगत प्रभाव की लेकिन बड़े स्तर पर आए बदलावों की ओर देखा जाए तो वहां भी कुछ ऐसा ही है।
 

आजकल कई कंपनियो ने अपने इंटरव्यू में ऐसी पॅालिसी बना ली हैं कि सोशल नेटवर्किंग में एक्टिव रहने वाले व्यक्ति को ही प्राथमिकता दी जाएगी। इसका मतलब यह एक भेदभाव को जन्म दे रहा है। साथ ही एक ब्रिटिश फर्म गार्टनर के सर्वे के अनुसार, यह बात सामने आई है कि अब कंपनियां अपने कर्मचारियों को नियुक्त करने से पहले सोशल नेटवर्किंग साइट पर मौजूद उनके प्रोफाइल को खंगाला जाता है जिससे कि उनकी मानसिकता का अंदाजा लगाया जा सके। इस तरह की चयन प्रक्रिया में आने वाले सालों मेंे इजाफा होने की पूरी संभावनाएं हैं।
 

खैर, सवाल यह है कि किया क्या जाए? इन साइटों या इंटरनेट को प्रतिबंधित भी नहीं किया जा सकता। ऐसे माहौल में जहां डिजिटल दुनिया का नशा हम सब पर अपना असर तेज़ करता जा रहा है वहां सतर्कता एक बड़ी जरूरत बन गई है। इंटरनेट से बढ़ती विकृतियों को समय रहते रोका भी जा सकता है बशर्ते आप खुद को इस सुरसा  के खुले मुंह में चल कर जाने से रोक सकें।     
 


6 comments:

  1. बहुत से प्रश्नों के उत्तर मांगती हुई सार्थक पोस्ट........

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  2. आँखे खोल देने वाला लेख ...अगर अभी भी नहीं संभले तो बहुत देर हों जाएगी

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    1. बिल्कुल सही कहा आपने अनु जी। समय पर संभल जाना ही बेहतर होगा।

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  3. bilkul sahi kahaa aapne sahamat hoon aapki baaton se kuch samay pahale maine bhi ek post likhi thi INTERNET AUR AAPKE BACCHE समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/

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    1. thnx pallavi ji. aapka blog acha hai.aapki post badi saarhak hai

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