"आने वाली पीढ़ी को शायद ही यह यकीन होगा कि गांधी जैसा भी कोई हाड़-मांस का पुतला इस धरती पर चला होगा" यह कथन विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइन्स्टाइन ने गांधी जी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर कहे थे. इस वैज्ञानिक के द्वारा कहे गए ये शब्द आज सच लगते हैं.
हाल ही में मेरा और मेरी एक मित्र का राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय में जाना हुआ. संग्रहालय में प्रवेश से पहले शान्ति देख लगा की बड़ा अनुशासन है. प्रवेश द्वार पर पर एक सन्देश लिखा था - "सत्य ही ईश्वर है". अन्दर जाकर पता चला की इतनी बड़ी जगह पर दर्शकों के नाम पर सिर्फ हम दोनों ही हैं. वही पास में कुर्सी पर एक सुस्त महिला बैठी थी जो गांधी साहित्य की पुस्तकों के ढेर में कही खोई हुई जान पड़ रही थी. इस पुस्तकालय में करीब 40 ,000 पुस्तकें और बहुमूल्य ग्रन्थ रखे हुए हैं . इसमें गांधीजी द्वारा दो दशकों से भी अधिक समय तक संपादित साप्ताहिक समाचार पत्रों का संग्रह है. अनेक महापुरुषों के साथ किये गए पत्र-व्यवहार का भी एक संग्रह है . हालांकि ये कागज़ अब पीले पड़ चुके हैं .
दूसरे तल पर गांधी जी की भौतिक वस्तुओं का संग्रहण किया गया है . असाधारण वक्तित्व द्वारा प्रयुक्त इन साधारण वस्तुओं को देखकर ही उनकी साधारण जीवन-शैली के बारे में पता चलता है . उनके द्वारा पढ़ी गई पुस्तकें, चरखे, औज़ार , घड़ी , कलम , छड़ी आदि का ये संग्रह बेहद सामान्य-सा लगता है . इन सभी के बीच गांधी जी का एक उपहार रखा दिखाई दिया , वो था- 'गांधी जी के तीन बन्दर'. यह सफ़ेद संगेमरमर का बना है जो उनके एक चीन के मित्र ने उन्हें दिया था .इस उपहार के साथ एक कथन में लिखा भी गया है कि वे इससे इतने प्रभावित हो गए थे कि संपूर्ण जीवन उन्होंने इन बंदरों को अपना गुरु माना .
यहीं एक फोटो गैलरी भी है जिसमे गांधी जी के जीवन गाथा (बाल्यकाल से मृत्युपर्यंत) से जुड़ी लगभग 300 फोटो हैं. इसी तल पर एक 'महाबलिदान गैलरी' नाम की गैलरी है. यहाँ एक सन्देश लिखा गया है "मेरा जीवन ही मेरा सन्देश है" . यहाँ गांधी जी की अस्थियों का कलश , मृत्यु के समय पहने रक्त रंजित शाल और धोती एवं जान लेवा तीन गोलियों में से एक गोली(जो उन्हें लगी थी) को रखा गया है. यही अखबारों की कटिंग , मरणोपरांत देश-विदेश के व्यक्तियों के सन्देश व गांधी जी के प्रिय भजनों को भी पढ़ा जा सकता है .
यहाँ गाँधी जी के बारे में जानने के लिए बहुत कुछ है लेकिन दुखद यह रहा कि इक्के-दुक्के दर्शकों के अलावा कोई नही आता. इन संग्रहालयो में यहाँ लिखे संदेशों को पढने वाला कोई नहीं है . आज की युवा पीढ़ी पर इन्हें जाकर पढने और देखने का ज्यादा समय भी नही है. वे ज्यादा से ज्यादा वक़्त फेसबुक और ऑरकुट के साथ बिताने लगे हैं. हम लोग ही इन्हें देखना नहीं चाहते तो इन संग्रहालयों के होने का मतलब ही क्या है? अगर आप इस देश और अपने पूर्वजों द्वारा दिए गए इन मूल्यों और आदर्शों को मानते हैं तो एक बार आप तो जरूर जाएँ .
आपकी नायाब पोस्ट और लेखनी ने हिंदी अंतर्जाल को समृद्ध किया और हमने उसे सहेज़ कर , अपने बुलेटिन के पन्ने का मान बढाया उद्देश्य सिर्फ़ इतना कि पाठक मित्रों तक ज्यादा से ज्यादा पोस्टों का विस्तार हो सके और एक पोस्ट दूसरी पोस्ट से हाथ मिला सके । । टिप्पणी को क्लिक करके आप सीधे बुलेटिन तक पहुंच सकते हैं और अन्य सभी खूबसूरत पोस्टों के सूत्रों तक भी । बहुत बहुत शुभकामनाएं और आभार । शुक्रिया
ReplyDeleteआपकी टिप्पणी के लिए बेहद शुक्रिया अजय जी।
Deleteआपकी ये पोस्ट पढ़कर मुझे बहुत अच्छा लगा, उम्मीद करता हूँ की आगे भी आपकी ऐसी ही पोस्ट आती रहेगी ।
ReplyDeleteअगर सम्भव हो सके तो मेरे नए ब्लॉग पर भी एक बार पधारे , और हो सके तो उसका अनुसरण भी कर ले । धन्यवाद ।
मेरा ब्लॉग पता है :- smacharnews.blogspot.com
हर्षवर्धन जी आपका बहुत आभार ।
Deleteअच्छी जानकारी दी आपने....बापू को नमन
ReplyDeleteधन्यवाद चैतन्य जी।
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