वन्दना शर्मा
पिछले दिनों अपनी परिक्षाओं के चलते मैं परीक्षा हॉल में बैठी थी। अपने लिखते से जा रहे हाथों को कुछ समय के लिए थोड़ा आराम दिया। खाली बैठे मैंने यूं ही इधर-उधर बैठे लोगों को देखा। परीक्षा में बैठने वालों का स्वभाव अक्सर ऐसा बन जाता है कि वह खुद से ज्यादा औरो पर नज़र रखते हैं।
मुझसे अगली दो पंक्तियों में तकरीबन तीस से पैंतालिस साल की कई महिलाएं परीक्षा दे रहीं थी। इस उम्र में जब महिलाएं बच्चों और परिवार के बीच फंसकर रह जाती हैं या उनकी पढ़ने की उम्र निकल गई, सोचकर बैठ जाती हैं लेकिन वो आगे बढ़ रही हैं। उन्हें देखकर अच्छा लगा। बहुत-सी महिलाएं पढ़ी-लिखी होने के बावजूद कुछ न करने की बात को अपने परिवार और बच्चों को संभालने का दंभ भरकर टाल जाती हैं।
खैर, बात हो रही थी परीक्षा दे रही उन अधेड़ महिलाओं की। जो गर्मी से परेशान घूम रही परीक्षक से नज़रें बचाकर अब कुछ बातें कर रही थीं। अनायास ही ध्यान गया कि वो कुछ का़ग़ज़ों की अदला-अदली कर रही थी। देखकर हैरानी हुई कि इस उम्र के लोगांे को तो मैंने बच्चों को समझाते देखा है कि चीटिंग करना ग़लत है। उन महिलाओं की उम्र से ऐसी अभद्रता की कोई आशा नहीं की जा सकती थी।
जब आप उच्च शिक्षा प्राप्त कर चुके हों तो आपसे तो कम से कम ऐसी अपेक्षाएं रखी जा सकती हैं कि आप देश को बेहतर बनाने में कोई सहयोग जरूर करेंगे।
यदि उच्चशिक्षित लोग ही ऐसी बेहुदगी दिखा रहे हों तो उनसे कैसी उम्मीद रखी जा सकती है?
उन महिलाओं से जब मैंने परीक्षा हॉल से बाहर आकर एक फॉर्मल सी बातचीत के दौरान यह पूछा कि आप लोग करते क्या हैं? तो तपाक से उनमें से एक महिला ने उत्तर दिया कि हम सब इंस्टीट्यूट में टीचर हैं।
ऐसा उत्तर पाकर कोई भी लाज़वाब रह जाता! सवाल तो ये था कि ये क्या बेहतर करती होंगी टीचिंग या चीटिंग? ये क्या कहकर किसी बच्चे को चीटिंग करने से रोकते होंगे। सोचिये ज़रा...
प्रिय वंदना जी
ReplyDeleteबात तो सही है, पर क्या है की हर किसी की अपनी मज़बूरी होती |
जिन्दगी सिर्फ सत्य और अहिंसा पर नहीं चलती | दिल्ली का रामलीला मैदान सबकुछ बयां करता है |
बाबा रामदेव अगर छल-कपट कर नही भागे होते तो शायद आज हमलोग उनको नहीं देख पाते |
कृष्ण ने भी महाभारत में खूब छल कपट किये थे |
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वैसे आपकी परस्तुति शानदार है - और मैं भी आपकी भावनाओं का समर्थन करता हूँ
जी बिलकुल सही कहा आपने आकाश जी! लेकिन एक साथ कई लोगों की मजबूरी अच्छी नहीं लगती, सत्य और अहिंसा नही यह तो सिर्फ मेह्य्नत की जरुरत होती है. आपकी बात भी बड़ी अची है जो बाबा रामदेव पर सटीक है.
Deleteऐसे लोग क्या किसी का भविष्य बनाएँगे? ऐसी सोच के लोग अपने साथ-साथ बच्चों के भविष्य से भी खिलवाड़ करते हैं.... जिन्हें खुद भी गुमान नहीं कि नैतिकता क्या होती है, वह क्या ख़ाक बच्चों को नैतिकता का पाठ पढाएंगे?
ReplyDeleteसचमुच ये एक अजीब सी बात है कि ये कैसा भविष्य बना रही हैं अपने स्टुडेंट्स का ? समर्थन के लिए धन्यवाद शाह नवाज़ जी !
Deleteअक्सर ऐसे कटु अनुभव होते ही रहते हैं.
ReplyDeleteji! ye ek aam si baat to thi hi par is umra ke l;ogon ko esa karte pahli baar dekha aur bura laga.
Deleteबेहद शर्मनाक....ऐसे लोग अक्सर दोहरी ज़िंदगी जिया करते हैं अपने मतलब के लिए कुछ और, ओर अपनों से जुड़े लोगों के लिए कुछ और यह लोग भी अपनी संस्था में चीटिंग न करने का उपदेश देती होंगी मगर जब खुद पर बात आई तो इन्हें भी यही सही लगा।
ReplyDeleteबिलकुल पल्लवी जी. इन पर बात आई तो इन्हें यही सही लगा! थेंक्स :)
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